बटेर, मधुमक्खी-भक्षी, लवा (भरत पक्षी) और इस तरह की अनेक प्रजातियां यहां सर्वत्र देखी जा सकती हैं ।
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और इसके बाद भी हम इस बूढ़ी ज़िन्दगी से चिपके रहते हैं यही सोच कर कि इस विषादपूर्ण मनोदशा के बाद सुख के क्षण आयेंगे, जब ह्रदय और आत्मा उल्लासित होंगे, उस भरत पक्षी की तरह जो प्रभात होते ही खुद को गाने से रोक नहीं पाता, तब भी जबकि कई बार हमारी आत्मा डूब रही होती है, आक्रांत होती है.